समुन्द्रगुप्त जीवनी :-
परिचय :-
भारत के नेपोलियन कहा जाने वाला समुन्द्रगुप्त जी गुप्त राजवंश के चौथे राजा थे | आपके पिता नाम चन्द्रगुप्त प्रथम तथा माता का नाम कुमारा देवी जी था | आपके भाई काचगुप्त, और अन्य थे फिर भी पिता जी ने आपको राजगद्दी दी | आपकी रानी दत्ता देवी तथा पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय और रामगुप्त था आपका शाशन काल (335-378) था |
शिक्षा एवं अभिरुचि :-
आपका अभिरुचि ललितकला , साहित्य, दर्शन, संगीत कला , एवं काव्य के सृजन में था | आपका कुशाग्र बुद्धि ही प्रत्येक क्षेत्र में आपको महान शाशक के रूप में प्रस्तुत किया आपके इस अनोखे साहित्य ज्ञान ने आपको कवि राज की संज्ञा दी |
शाशक के रूप में :-
आपके महान सेना की नेतृत्व करने की क्षमता , वीर , पराक्रम , दयालु स्वाभाव ने आपके पिता की मृत्यु के पश्चात् आपको सम्राट बनाया वैसे तो आप भाइयो में तो जेष्ठ नहीं थे परन्तु आपका असाधारण योग्यता ने आपको शाशक के रूप में चुना इस पर राज्य के नागरिक काफी खुश थे | किन्तु इसके बाद गृहयुद्ध हो गया | जिसे शांत करने में आपको 1 वर्ष लगा | आपके दरबार में प्रसिद्ध बौद्ध भिक्क्षुक वसुबन्धु निवास करते थे |
दिग्विजययात्रा :-
आप अपने दिग्विजययात्रा में आर्यव्रत के तीन राजा अहिच्छाव के राजा अच्युत , पद्मावती का भारशिववंशी, नागसेन का राजा कोटकुलज को पराजित कर अपने अधीन किया |
दक्षिण की यात्रा :-
आपने कौशल, महाकांतार, भौराल, पिष्टपुर का महेंद्रगिरी (मद्रास प्रान्त का वर्तमान पीठापुरम ) , कोट्टूर , एरंडपल्ल, कांची , अवमुक्त , वेगी , पाल्लक, देवराष्ट्र , और कौस्थलपुर , समेत बारह राज्यों में विजय प्राप्त किया |
जब आप युद्ध में थे तो अनेक राज्यों ने अपने आप को स्वतंत्र घोषित कर दिया था | और विद्रोह करने लगे परन्तु आपने युद्ध से सीधा उनका दमन कर पाटिलीपुत्र अपने राजधानी पहुंचे बाद में सभी राज्यों को आपने अपने अधीन कर लिया था | आपका साम्राज्य पश्चिम में गंगाधर से लेकर पूर्व में आसाम तक तथा उत्तर में हिमालय के कीर्तिपुर जनपद से लेकर दक्षिण में सिहल तक फैला हुआ था |
वैवाहिक गठबंधन :-
वैवाहिक गठबंधन गुप्तों में प्रमुख स्थान रखता है | आपने अनेक राज्यों के साथ वैवाहिक गठबंधन रखा आपके आनेक रानी थे जिसमे कुमार देवी जी आपके पटरानी थी |
विदेशी राज्य :-
समुन्द्रगुप्त के शाशन काल में निम्न विदेशी शाशक थे -
1 . शक : यह पश्चिम भारत में निवास करते थे , इस समय शक शाशक रूद्र सिंह तृतीय था |2. कुषाण : पश्चिमोत्तर भारत में निवास करते थे , इस समय कुषाण शाशक केदार था |
3. सिहल : यह श्रीलंका क्षेत्र था | इस समय वहाँ का शाशक मेघवर्मन था | जिसने समुन्द्र गुप्त के समय बोधगया में एक बौद्ध विहार का निर्माण कराया यह बौद्ध विहार वर्तमान में महाबोधि संघाराम कहलाता है |
समुन्द्रगुप्त के सिक्के :-
सर्वाधिक सोने के सिक्के मिले है जिनमे निम्न अंकित है | युद्ध के पोशाक में धनुष और बाण पकड़ा है वही दूसरी और लिखा है -"समरशतवितत -विजयी जितारि अपराजितो दीवं जयति " |
समुंद्रगुता के सिक्के |
अश्वमेध यज्ञ :-
समुन्द्रगुप्त के प्राप्त सिक्को में अश्व अंकित है जिससे ज्ञात होता है उन्होंने अश्वमेध यज्ञ की होगी |
वही सिक्के के दूसरे ओर "राजाधिराज: पृथिवीमवजित्य दिवं जयती अप्रतिवार्य वीर्य लिखा है |
समुन्द्रगुप्त के सिक्के |
मृत्यु :-
378 इ में अपने जेष्ठ पुत्र रामगुप्त को मगध का सम्राट घोषित कर आपना अंतिम सांस ली |
आभार :-
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