आचार्य चाणक्य का जीवनी :-
परिचय :-
मुद्राराक्षस के अनुसार आपका नाम विष्णुगुप्त था | आपका जन्म अनुमानित 375 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना ) में हुआ था | जैन ग्रंथो के अनुसार आपके पिता का नाम ऋषि कानाक या चैनिन था तथा माता का नाम चनेश्वरी था आपके धर्म पत्नी का नाम यशोमति था | आपका मृत्यु अनुमानित 283 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र में हुआ था | (उपरोक्त जन्म तिथि स्थान के सन्दर्भ में विभिन्न विद्वानों के मध्य मतभेद है | ) आपके गुरु का नाम आचार्य वर रूचि था | तथा आपका शिष्य राधा गुप्त एवं कामंदक था |
शिक्षा :-
आपका जन्म एक गरीब ब्राम्हण परिवार में हुआ था | आपको कभी - कभी भोजन भी नसीब नहीं होता था जिस वजह से आपको भूखा सोना पड़ता था | | आपका शिक्षा तक्षशिला में हुआ था | वहां आपको शिक्षा आचार्य वर रूचि ने दिया था | आपको अर्थशास्त्र , राजनैतिक , समुन्द्र शास्त्र , शस्त्र विद्या , वेद , पुराण, धार्मिक ग्रन्थ , ओषधि , ज्योतिष शास्त्र और युद्ध रणनीति के अच्छे ज्ञाता थे | आपको संस्कृत, ग्रीक , फ़ारसी जैसे अनेक भाषाओ का ज्ञान था |
धनानंद के साथ प्रसंग :-
तत्कालीन समय में आप तक्षशिला के अध्यापक थे जब यमन शासक सेल्यूकस अपने साम्राज्य विस्तार के लिए भारत की ओर बढ़ रहे थे | आप किसी विदेशी शासक को भारत में नहीं आने देना चाहते थे भारत को दूषित नहीं करना चाहते थे अपने अखंड भारत के स्वपन को साकार करने तथा सेल्यूकस को रोकने के लिए तत्कालीन भारतीय सम्राट धनानंद को सूचित करने उनके राजदरबार में गए थे | तब धनानंद ने अपने भरे राजदरबार में आपको कहा की एक भिक्षुक ब्राम्हण मुझे राजनैतिक ज्ञान या सलाह देगा तुम्हे लगता है की मुझे अब तुमसे सलाह लेने की आवश्यकता है मुर्ख ब्राम्हण तुम अपनी दक्षिणा ले लो और यहाँ से दफा हो जाओ यह कहते हुआ सम्राट धनानंद ने आचार्य को धकेल दिया जिस वजह से आचार्य का शिखा खुल गया और अपनी इस बेइजत्ती खुली शिखा को देख कर आचार्य ने अपने तीखे स्वर में कहाँ जिस शिखा तूने अपमान किया है धनानंद उस शिखा को मै तब तक नहीं बाँधूँगा जब तक मै तुम्हारे समग्र कुल का नाश नहीं करदूंगा | और तुम्हारे वध से जो रक्त प्रवाह होगा उस रक्त से मै अपने शिखा को धोकर बांधूंगा |
chanakya biography in hindi |
चन्द्रगुप्त से मिलन :-
आचार्य जब धनानंद को चेतावनी देकर जा रहा था तब जंगल में शेर ने उस पर आक्रमण कर दिया था | तो एक बालक ने आचार्य को बचाया | बाद में आचार्य ने इसी बालक को राजा और प्रजा का खेल खेलते देखा जिसमे आचार्य ने उस बालक में एक भावी सम्राट का गुण देखा ये बालक कोई और नहीं चन्द्रगुप्त मौर्य था |
संघर्ष जीवन :-
आचार्य की खुली शिखा उनको निरंतर अपने अपमान याद दिलाता था | आचार्य ने चन्द्रगुप्त को शाश्त्र विद्या , शस्त्र ,राजनीती,रणनीति ,धर्म ,वेद,पुराण में परांगत किया था | समय बीत गया अब चन्द्रगुप्त अपने बाल्य अवस्था से युवा अवस्था में आ गया था | आचार्य को ज्ञात था की धनानंद को हराना इतना आसान नहीं है धनानंद के इस विशाल साम्राज्य को हराने में अभी भी उनके समक्ष कई समस्याएं है |
धनानंद को हारने के लिए आचार्य ने निम्न योजना बनाये :-
- आचार्य ने सबसे पहले एक विशाल सेना का निर्माण किया |
- ऐसे राज्यों के राजा से मिले जो धनानंद के क्रूर शासन से परेशान थे | और उन्हें अपने इस युद्ध में सहयोगी बना लिया |
- ऐसे छोटे राज्य जो धनानंद के समर्थक थे उन पर छापा मार युद्ध पध्दति से युद्ध कर अंत कर दिया तथा उसके सेना और अर्थव्यवस्था का लाभ धनानंद के खिलाफ युद्ध में किया |
- ऐसे बड़े राज्यों के राजा जो धनानन्द के समर्थक थे | उन राज्यों और धनानंद के मध्य गलतफहमी बड़ा कर विवाद उत्पन्न किया और युद्ध में धनानंद को बाहरी समर्थन नहीं मिलने दिया |
- कहा जाता है उस समय आचार्य ने सुन्दर कन्या को कम मात्रा में विष दे कर धीरे - धीरे उन्हें विष कन्या में परिवर्तित कर धनानंद के विरुद्ध कार्य किये जिसमे आपने उनके अनेक अधिकारियो को मौत के नींद सुला दिया परन्तु विष कन्या के माध्यम से धनानंद को मारने में आप असफल रहे |
- आपने धनानंद के खजाना लूट कर उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर बना दिया था |
- आचार्य ने धनानंद के शस्त्रागार में चुपके से आग लगवा दिया | आप बड़े विद्वान थे आप जानते थे की अगर धनानंद के पास अच्छे शस्त्र नहीं होंगे तो उनके सेना कितने ही प्रशिक्षित क्यों न हो वो युद्ध अच्छे से नहीं लड़ पाएंगे |
- आचार्य को ज्ञात था धनानंद की शक्ति उसके भाइयो में निहित है इस लिए आपने धीरे-धीरे कर उसके एक- एक भाइयो को मार दिया |
- आपने मगध में आंतरिक अशांति की स्थिति उत्पन्न कर दिया जिसमे धनानंद उलझा रहा और युद्ध के लिए कोई बड़ी रणनीति नहीं बना पाया |
- मगध के ऐसे स्तिथि में आपने चन्द्रगुप्त को लेकर सीधे धनानंद के साथ युद्ध कर दिया |
अंततः धनानंद मृत्यु को प्राप्त हो जाता है और आचार्य अपने प्रण को साकार कर लेता है तथा अपने खुली शिखा को बांध लेता है तत्पश्चात आप चन्द्रगुप्त मौर्य को मगध का भावी सम्राट और स्वयं को अमात्य घोषित कर देते है मगध के जनता के समक्ष |
आचार्य चाणक्य का सप्तांग सिद्धांत :-
- स्वामी ( राजा ) :- सर के सामान है | बुद्धिमान,साहसी, दूरदर्शी , धैर्यवान व् युद्ध कला ने निपुण होना चाहिए |
- अमात्य ( मंत्री ) :- राज्य की आँखे है | जो उच्च कुल के योग्य नागरिक , चरित्रवान , विभिन्न कलाओ में निपूर्ण व् स्वामिभक्त होना चाहिए |
- जनपद ( भूमि तथा प्रजा या जनसंख्या ) :- राज्य की जंघाए तथा पैर है | भूमि उपजाऊ तथा प्राकृतिक संसाधन से परिपूर्ण होना चाहिए | प्रजा स्वामिभक्ति होना चाहिए |
- कोष ( राजकोष ) :- राजा के मुख के सामान है जो राज्य के महत्वपूर्ण तथ्य है कोष भरपूर होना चाहिए ताकि विपत्ति के समय काम आ सके |
- दुर्ग ( किला ) :- राज्य की बाहें है जो राज्य का रक्षा करता है ऐसे दुर्ग का निर्माण करवाना चाहिए जो विपत्ति के समय लाभकारी हो आपने चार प्रकार के दुर्ग बताये है 1. दुर्गों - औधिक् (जल ) दुर्ग 2. पर्वत ( पहाड़ी ) दुर्ग 3. वनदुर्ग जंगली 4. धन्वन (मरुस्थलीय ) दुर्ग
- दंड (बल डंडा या सेना ) :- राज्य का मस्तिष्क है | प्रजा तथा शत्रु पर नियंत्रण हेतु बल आवश्यक तत्व है | सैनिको को युद्ध कौशल में दक्ष तथा राष्ट्रभक्त होना चाहिए |
- सहृद (मित्र ) :- राज्य के कान राजा के मित्र शांति व् युद्धकाल के समय दोनों ही एक दूसरे के मदद करते है |
चाणक्य छः सूत्रीय विदेश निति :-
- संधि :- शांति बनाये रखने हेतु समतुल्य या अधिक शक्तिशाली राजा के साथ संधि की जा सकती है | आत्म रक्षा के दृष्टि से शत्रु से भी संधि की जा सकती है | किन्तु इसका लक्ष्य शत्रु को कालांतर निर्बल बनाना है |
- विग्रह :- शत्रु के विरुद्ध युद्ध का निर्माण करना |
- यान :- युद्ध घोषित किये बिना आक्रमण करना |
- आसान :- तटस्थता को निति |
- संश्रय :- आत्म रक्षा को दृष्टी से राजा द्वारा अन्य राजा के शरण में जाना |
- द्वैधीभाव :- एक राजा से शांति की संधि करके अन्य के साथ युद्ध करने की निति |
गुप्तचर :-
आपने गुप्तचर व्यवस्था का संचालन किया जिसका उद्देशय विदेशी अन्य राष्ट्रों तथा अपने ही राष्ट्रों की गुप्त जानकारी राजा तक पहुंचाते थे | ये गुप्तचार एक आम नागरिक, व्यापारी,सैनिक,दस,शूद्र कोई भी हो सकता है जिन्हे शस्त्र विद्या के साथ ही कई विद्या का ज्ञान होता था | राजा इनको धन देकर खुश रखते थे |
आपने ही चन्द्रगुप्त के बाद उनके पुत्र बिन्दुसार और उनके बाद सम्राट अशोक को मगध का सम्राट के रूप में नियुक्त किया था |
विष्णुगुप्त जिन्हे आज हम आचार्य चाणक्य के रूप में जानते है | उनके जीवनी के सन्दर्म में जानकारी हमें जैन ग्रथो , बौद्ध ग्रंथो तथा अन्य ग्रंथो से मिलता है जिसमे एक सामान बात कही है वो है आचार्य चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के साथ मिलकर नन्द वंश का नाश कर मौर्य वंश का स्थापना किया किन्तु आपके जन्म तिथि , जन्म एवं मृत्यु स्थान, आपके परिवार का विवरण के सन्दर्भ में सारे ग्रंथो में अलग - अलग जानकारी है उनमे मतभेद है अतः हमने इन कड़ियों को जोड़कर आचार्य का जीवनी आपके समक्ष प्रस्तुत किया है
आभार :-
अपना बहुमूल्य समय हमें देने के लिए मै सोनू देवांगन Inspireinstitute1.blogspot.com पर आपका स्वागत करता हूँ | अगर यह पोस्ट आपको अच्छी लगी तो इसे अपने दोस्तों एवं स्नेहजनो के साथ जरूर शेयर करे साथ ही हमें कमेंट करे सब्सक्राइब करे तथा साथ ही बेल आइकॉन को प्रेस करे ताकि नई पोस्ट का अपडेट आपको मिलता रहे |
घोषणा :-
Inspireinstitute1.blogspot.com में विद्वानों के निरिक्षण से पोस्ट लिखे जाते है, किन्तु व्यक्ति विशेष के
किसी घटना, नाम, तिथि, स्थान तथा अन्य कोई कड़ी में त्रुटि होने पर Inspireinstitute1.blogspot.com जिम्मेदार नहीं होगा | सही जानकारी अपडेट करने हेतु आप हमें कमेंट या ईमेल के माध्यम से जानकारी दे सकते है |
Inspireinstitute1.blogspot.com में विद्वानों के निरिक्षण से पोस्ट लिखे जाते है, किन्तु व्यक्ति विशेष के
किसी घटना, नाम, तिथि, स्थान तथा अन्य कोई कड़ी में त्रुटि होने पर Inspireinstitute1.blogspot.com जिम्मेदार नहीं होगा | सही जानकारी अपडेट करने हेतु आप हमें कमेंट या ईमेल के माध्यम से जानकारी दे सकते है |
Thanks
ReplyDelete