Chakravarti Ashoka Samrat Biography in hindi

अशोक सम्राट जीवनी :-

एक चक्रवर्ती अशोक सम्राट बनने तक का सफर | 
Chakravarti Ashoka Samrat Biography in hindi
Chakravarti Ashoka Samrat Biography in hindi

परिचय :-

                 सम्राट अशोक मौर्य वंश का तीसरा बड़ा शाशक था | आप महान सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के पौत्र तथा बिन्दुसार के पुत्र थे | युद्ध क़ाल के समय आपके पिता जी ने चम्पक नगर के  एक वैद्य के पुत्री से गंधर्भ विवाह किया था जिसका नाम शुभद्रांगी था | जिसे प्रेम से पिता जी धर्मा कहते थे | सम्राट बिन्दुसार ने रानी धर्मा को बाद में राजमहल ले जाने का आशा देकर वहाँ से राजमहल चले गए | बाद में सम्राट बिन्दुसार ने जब अपने सेनापति को रानी धर्मा को ले आने के लिए भेजा तो उसने बिन्दुसार को यह गलत  सूचना दिया की किसी ने रानी धर्मा के कुटिया में आग लगाकर उन्हें जला दिया है | जबकि वह जीवित थी इसके बाद सम्राट काफी उदास रहने लगे थे  आप माता धर्मा के पुत्र है |  आपका जन्म 304 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र में हुआ था | जब आचार्य चाणक्य कही जा रहे थे तब उसने एक लड़के को राजा और प्रजा वाले खेल खेलते देखा और उन्हें अपने प्रिय शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य का याद  आ गया आचार्य उस बच्चे के पास जाकर जब वार्तालाप किया तब उसने उसके गले में सम्राट बिंदुसार का अंगूठी बंधा हुआ दिखा जो सम्राट केवल अपने नजदीकियों को देते थे | तब आचार्य ने उनकी माता धर्मा  से भेंट कर पूरी कहानी सुना और दोनों को राजमहल लाकर सम्राट के समक्ष प्रस्तुत किया |  सम्राट बिन्दुसार के  16 पटरानी तथा 101 पुत्रो का उल्लेख मिलता है जिसमे सुशीम अशोक से  बड़ा था तथा तिष्य सबसे छोटा एवं सगा भाई था | आपके पत्नियाँ महारानी देवी , रानी पद्मावती , तिश्यरक्षा , कौर्वकी आदि थी तथा आपके संतान कुणाल ,महेंद्र , संघमित्रा जालुक, चारुमति , तिवाला आदि थे |


शिक्षा :-

               महान सम्राट चन्द्रगुप्त और बिन्दुसार के तरह की आपको शिक्षा आचार्य चाणक्य ने दी | चुकी आपके माता एक नीच वर्ग से थी इस कारण  आपको सभी दासी पुत्र के नाम से चिढ़ाते थे | आपको बचपन से ही आलोचना का सामना करना पड़ा | परन्तु आप तीर बाजी , तलवार चलाने, भाला फेकने, जैसे शस्त्र विघा में आप परांगत थे  आचार्य ने   आपको वेद पुराण शास्त्र राजनीती कूटनीति नीतिशास्त्र अर्थशास्त्र जैसे अनेको विषय का ज्ञाता बना  दिया था |

संघर्ष जीवन :-

                 आपका प्रारंभिक जीवन संगर्ष से भरा था | आपके अनेक सौतेले भाई आपसे ईर्ष्या करते थे | पिता जी ने आपके जेष्ठ भाई सुशीम को तक्षशिला का प्रांतपाल घोषित किया था | किन्तु सुशीम के अकुशल प्रशासन के कारण वहाँ विद्रोह हो गया | चुकी आप सैन्य शिक्षा में परांगत थे तो आपके पिता जी ने वहां के विद्रोह का दमन करने के लिए आपको भेजा | विद्रोहियों को जब आपके आने का सुचना मिला तो उन्होंने विद्रोह समाप्त कर दिया |  इसमें मिली प्रसंशा से सुशीम डरने लगा की कही सत्ता का बागडोर पिता जी अशोक को न देदे , इस पर पिता जी को बोलकर आपको निर्वास में भेज दिया | इसके बाद आप कलिंग चले गए वहाँ आपको मत्स्यकुमारी कौर्वकी से प्रेम हो गया जो बाद में आपके दूसरी या तीसरी पत्नी बनी |
Chakravarti Ashoka Samrat Biography in hindi


जब उज्जैन में  विद्रोह हुआ तो सम्राट बिन्दुसार ने आपको बुलाकर उनके दमन के लिए भेजा वहाँ  विद्रोह के दमन करने के दौरान आपको देवी नाम के एक कन्या से प्रेम हो गया और आपने उनसे विवाह कर लिया था |

उज्जैन के बाद जब आप अवन्ति का  शासन चलाया तब आपने विदिशा की राजकुमारी शाक्य कुमारी से विवाह किया | जिनसे आपको पुत्र के रूप में महेंद्र तथा पुत्री के रूप में संघमित्रा प्राप्त हुआ |

इधर बिन्दुसार वृद्ध हो गए थे और शासन का कार्यभार सुशीम देख रहा था परन्तु जनता सुशीम के कार्यकाल से खुश नहीं था | कुछ लोगो ने  अशोक से सत्ता का बागडोर अपने हातो में लेने को कहा | जब अशोक को यह ज्ञात हुआ की आचार्य चाणक्य और उनकी  माँ के मृत्यु में उनका सौतेला भाइयो का हाथ है तब आक्रोश में आकर उन्होंने अपने सौतेले भाइयो  क़ो मार दिया | तथा स्वयं को मगध का सम्राट घोषित कर दिया |

माना  जाता है की आपका साम्राज्य पूरा भारत तथा ईरान की सीमा तथा पश्चिम उत्तर हिंदूकश था और आपने धीरे -धीरे अपने साम्राज्य को भारत के सबसे बड़ा साम्राज्य में बदल दिया था |

कलिंग का युद्ध :-

                             261 ईसा पूर्व में आपने कलिंग पर आक्रमण किया था | जिसमे आपने 1 लाख 50 हजार लोगो को बंदी बनाकर निर्वासित कर दिया था तथा 1 लाख लोगो का नर संहार कर दिया था | | जिस कारण से आपको चंड  अशोक कहा जाने लगा | बाद में आपने आत्मग्लानि से भरकर इसका पश्चाताप किया और अध्यात्म की ओर  ध्यान दिया था |

बौद्ध धर्म के अनुयायी :-

                               कल्हण की राजतरंगणी के अनुसार आप पहले शिव भक्त  थे | किन्तु बौद्ध धर्म के तत्कालीन प्रभाव ने आपको उसका अनुयायी बना दिया था | उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षुक ने आपको बौद्ध धर्म की शिक्षा दिया | सबसे पहले आप ने बोध गया का यात्रा किया | आपने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिये अपने पुत्र महेंद्र तथा पुत्री संघमित्रा को  नेपाल, श्रीलंका, अफगानिस्तान, सीरिया , मिस्त्र तथा यूनान भेजा | जहाँ अधिक सफलता महेंद्र को श्रीलंका में मिला वहां के  राजा तिस्स ने बौद्ध धर्म को अपना राज धर्म बना लिया |

अशोक ने अपने  ही शासन काल में तृतीय बौद्ध धर्म के संगीति का आयोजन किया | जिसकी अध्यक्षता मोगली पुत्र तिष्या ने की और यही अभिधम्मपिटक की रचना की गयी |


शिलालेख :-

                   सम्राट अशोक के शिलालेख  आधुनिक बंगलादेश , भारत , अफगानिस्तान , पाकिस्तान , नेपाल , मिस्त्र और यूनान में मिले है | जो संस्कृत , ब्राम्ही लिपि, खरोष्टी लिपि ,यूनानी भाषा और अमराई भाषा में लिखे है | जिसमे सम्राट अशोक को प्रियदर्शी बताया है जिसमे मौर्य युगीन तत्कालीन सामाजिक , राजनैतिक , सांस्कृतिक स्थितियों को वर्णन मिलता है |
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मृत्यु :-

            आपकी मृत्यु 232 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र (पटना ) में हुआ था | और 24 घंटो के भीतर ही आपका अंतिम संस्कार कर दिया गया था | और बाद में आपको गंगा में विसर्जन किया गया |

अशोक चक्र :-

                       भारतीय तिरंगे में विराजमान अशोक चक्र और त्रिमूर्ति सत्य मेव जयते का निर्माण सम्राट अशोक ने तक्षशिला के विद्रोह के दमन के समय तत्कालीन परिस्थितियों के लिए न्याय का स्मारक के रूप में स्थापना किया था | 

भारतीय इतिहास में जितने भी  अशोक हुआ है वो निम्नवत है :-


  1. पहला अशोक :- कल्हण के राजतरंगणी के अनुसार कश्मीर के राजवंशो के लिस्ट में 48 वे राजा का नाम अशोक था , जो की कनिष्क के तीन पीढ़ी पहले था | वह कश्मीर के गोनंद राजवंश का राजा था | इस राजा को धर्माशोक भी कहते थे | 
  2. दूसरा अशोक :- हिन्दू पुराणों के अनुसार मौर्य वंश का तीसरा राजा अशोक जो चन्द्रगुप्त मौर्य का पौत्र और बिन्दुसार का पुत्र था | यही महान सम्राट चक्रवर्ती अशोक कहा गया है जिन्होंने कलिंग युद्ध की और बाद में बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए थे | 
  3. तीसरा अशोक :- गुप्त वंश के तीसरा राजा समुद्रगुप्त का उपनाम अशोकादित्य था | समुद्रगुप्त को अनेक स्थानों पर अशोक ही कहा गया है | जिसके कारण से भ्रम उत्पन्न हुआ है | 
  4. चौथा अशोक :- पुराणों में शिशुनाग वंश के दूसरे राजा का नाम भी अशोक था वह शिशुनाग का पुत्र था | उसका कला रंग होने के कारण उसे "काकवर्णा " कहते थे | हालांकि उसे कालाशोक के नाम से भी पुकारा जाता था |     

आभार :-

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Milan Tomic

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